सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

क्या हमारी पहचान हमसे छिना ली जायेगी ?


 
प्रिय आत्मन !
सादर नमन ! 
कलियुग के इस चरण में सनातन धर्मियों को कदाचित सर्वाधिक संकट से जूझना पड़ रहा है....यह त्रासदी भरा काल है .....चिंतन की आवश्यकता है ......और पुनर्जागरण की अनिवार्यता......
.....अन्यथा जिस तरह विश्व की अनेक जातियाँ, धर्म, संस्कृतियाँ, सभ्यताएँ और भाषाएँ लुप्त हो गयीं ....होती जा रही हैं उसी तरह हम भी लुप्त हो जायेंगे ..... हमारा स्वर्णिम अतीत भी समाप्त हो जाएगा. हमारी अकर्मण्यता और नपुंसकता ने बृहत्तर भारत के कई टुकड़े काट कर हमसे पृथक कर दिए हैं. किन्तु यह सिलसिला थमा नहीं है अभी भी .....महान द्रविण और आर्य संस्कृति वाले खंडित आर्यावर्त को पुनः खंडित करने और इसे इस्लामिक देश बनाने की कुटिल रणनीति का समूल उच्छेद करने की दृष्टि से हमें अपने सारे मतभेद भुलाकर केवल ...और केवल माँ भारती की सेवा के लिए ...भारत की महान संस्कृति को पुनः स्थापित करने के लिए एक मंच पर आना ही होगा. आइये, हम संकल्प करें कि अब इस देश को और खंडित नहीं होने देंगे और भारत को हिन्दू देश के रूप में सुस्थापित करने के पवित्र उद्देश्य से अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदा तत्पर रहेंगे. 
जय आर्यावर्त! जय भारत ! जय सनातन धर्म ! जय आर्य संस्कृत ! जय द्रविण संस्कृति !

1 टिप्पणी:

  1. वर्त्तमान के अत्यंत ज्वलनशील विषय की ओर ध्यानाकर्षित किया है आपने ....हैदराबाद के विधायक ओबेसी ने मंदिर की घंटियाँ बजाने पर प्रतिबन्ध लगाने के अपने अभियान में प्राप्त सफलता से उत्साहित हो कर अब आने वाली होली पर भी संभावित दंगा रोकने के नाम पर प्रतिबन्ध लगाने का अपना अगला अभियान प्रारम्भ कर दिया है....उनका तीसरा अगला अभियान क्या हो सकता है यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि तथाकथित राष्ट्रवादी मुसलमान चुप क्यों हैं ? क्या उनकी मौन सहमति है ? या वे इस्लामीकरण के जुझारुओं से डरते हैं? यदि वे डरते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लामिक संगठन हिंसा के माध्यम से भारत को इस्लामिक देश बनाने के अभियान में सफल हो सकता है...क्यों कि हमारी सरकार में इतनी दम नहीं है कि वह इसका कोई हल खोज सके. दूसरी ओर हिन्दू संगठन यदि सुलझे हुए होते तो आर्यावर्त के इतने खंड नहीं हुए होते.
    आपकी चिंता स्वाभाविक है और लोगों को मंथन की अपरिहार्यता के लिए आमंत्रित करती है.

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